“एक्स-मुस्लिम कम्युनिटी ऐसे बहादुर लोगो का समूह है जिन्होंने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए इस्लामिक इको सिस्टम के विपरीत जा कर , एक ऐसे समाज के सृजन की मुहिम शुरू की है जो मुसलमानो के अंदर के सोए हुये इंसान को जगाता है, जिससे वो इस्लाम की दरिंदगी से उनको इंसानियत की तरफ जा सकें। ”
एक्स-मुस्लिम वो लोग हैं जिनका जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ, इन लोगो ने बचपन से इस्लाम धर्म के नियमो को सीखा एवं अनुभव किया। कुरान को अरबी भाषा में कंठस्थ किया(उसको आयतो को समझा नहीं) तथा इस्लाम की रीतियों तथा कुरीतियों को अल्लाह का आदेश मानकर पालन किया। लेकिन इन लोगो का दिमाग मजबूत था इनका ब्रैनवॉश पूरी तरह से नहीं हो पाया और मस्तिष्क के किसी कोने में मानवता जीवित रही। ये लोग मुस्लिम परिवार में पैदा जरूर हुए लेकिन इंसानियत के कीड़े ने इनको इस्लामिक जिहादी इको सिस्टम के विपरीत जगाये रखा।
अधिकतर एक्स मुस्लिम यही बताते हैं कि जब इन्होने कुरान को समझ कर पढ़ा तो इनको कुरान, अल्लाह एवं जन्नत की हकीकत का बोध हुआ। वास्तव में हर एक एक्स मुस्लिम वो गौतम बुद्ध है जिसको इस्लामिक जेहादी इको सिस्टम से बाहर निकलने का ज्ञान बोध हुआ है।
निश्चय ही २०% से अधिक मुसलमानो का इस्लामिन इको सिस्टम द्वारा पूर्ण ब्रेनवाश नहीं हुआ है उनके भीतर भी इंसानियत किसी रूप में जिन्दा है , लेकिन इस्लामिन इको सिस्टम के कारण ना तो वो अपनी मंशा किसी को बता सकते हैं और ना ही एक्स मुस्लिम बनने की हिम्मत कर पाते है।
अगर कोई मुस्लमान इंसानियत की तरफ बढ़ता हैं तो इस्लामिक इको सिस्टम उसको जकड लेता है, कुरान इस्लाम छोड़ने वाले को मारने का आदेश देता है। यहाँ तक कि इस्लाम धर्म को त्यागने के बाद बेटा अपने पिता का, पत्नी अपने पती का तथा बाप अपने बेटे का सर तन से जुदा कर सकता है।
एक्स-मुस्लिम कम्युनिटी ने इस बात को समझा है कि समाज में इस्लामिक विचारधारा के कारण उत्पन्न कट्टरता से समाज के दुसरे वर्ग के लोगो में भी अपने बचाव के लिए कट्टरता आ रही है।इस्लामिक विचारधारा के अनुसार, धरती पर इस्लाम का शासन(दार-अल-इस्लाम) स्थापित करना और गैर मुसलमानो (काफिरो) को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए विवश करना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है और इसी कारण समाज में इंसानियत का धीरे धीरे पतन हो रहा है।
ऐसा नहीं है कि एक्स-मुस्लिम कम्युनिटी अभी कुछ वर्ष से सक्रिय हुयी है, एक्स-मुस्लिम पहले भी सक्रीय रहे हैं। तस्लीमा नसरीन , सलमान रशदी ,मुस्तफा केमल अतातुर्क आदि जैसे कई लोग इस्लाम के विरुद्ध आवाज़ उठाते रहे हैं लेकिन इनकी आवाज़ अधिक लोगो तक नहीं पहुंच पायी। आज सोशल मीडिया के युग में एक्स-मुस्लिम कम्युनिटी इस्लामिक इको सिस्टम को बाईपास कर लोगो तक अपनी बात रखने में सक्षम हो गयी हैं और लोगो को कुरान के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण सहयोग कर रहें है। आज एक्स-मुस्लिम मुहिम के फल स्वरुप ही पूरी दुनिया के लगभग 10% से 20% मुसलमान प्रत्येक वर्ष कट्टरता छोड़ कर या तो एक्स-मुस्लिम हो रहे है , या फिर धर्म परिवर्तन कर रहें हैं।
कुछ एक्स-मुस्लिम्स जो कि मुसलमानो में इंसानियत को जगाने के लिए अपना सब कुछ छोड़ मुहिम के लिए लगन से काम कर हैं , उनके नाम इस प्रकार हैं।